Menu
blogid : 24449 postid : 1293964

मोदी के राज में चाय वाला दुकान छोड़ लाइन में लगा है

Sach Kadva Hai
Sach Kadva Hai
  • 14 Posts
  • 7 Comments

पिछले 8 नवम्बर की रात्रि से जब से जनता को जानकारी हुई है कि 500-1000 के नोट निरस्त कर दिये गये हैं तभी से उनका दिन का चैन और रात की नींद उड़ी हुई है। कहीं वह लम्बी लाइनों में लगे हुऐ हैं तो कहीं लाइनों से बचने के लिये 20 से 50 प्रतिशत कमीशन देकर अपने नोट बदलने पर मजबूर नजर आ रहे हैं।
कहने को मैं और मेरा परिवार भी आर.एस.एस एवं भाजपा से जुड़ा हुआ है और बचपन में ‘‘सौंगध राम की खाते हैं, मन्दिर वहीं बनाएंगे’’ के नारे की आंधी में बहकर लाठियां खाकर एक माह से अधिक जेल की हवा भी खा चुका हूँ। बल्कि बचपन से ही देशभक्त और राष्ट्रभक्तों की लाइन में लगकर आरएसएस एवं भाजपा की जय-जयकार करते हुए नरेन्द्र मोदी के अच्छे दिनों के नारों में बहकर अपनी वोट भी दे चुका हूँ। मई 2014 में जब नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पर की शपथ लेते हुए कहा था कि विदेशों में छिपे कालाधन को तो शीघ्र वापिस लायेंगे ही बल्कि कालाधन जमा करने वालों को जेल भेजेंगे। मोदी जी के इस ऐलान से लगा था कि अब आम जनता के अच्छे दिन आ जायेंगे। लेकिन अच्छे दिन का इंतजार करते-करते मुझ जैसे लोगों की उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आया। मोदी ने केन्द्र की सरकार संभालते ही विदेशों में भेजने वाले धन की प्रति व्यक्ति सीमा 75000 डाॅलर से बढ़ाकर 1.25 लाख डाॅलर कर दी जिसे बढ़ाकर अब 2.5 लाख डाॅलर तक कर दिया गया है। जिसके कारण 30 हजार करोड़ की ही राशि विदेशों में भेजी गई है।
एक तरफ मोदी विदेशों में छिपे कालेधन को लाने में सफल नहीं हो सके तो दूसरी तरफ बैंकों की लाखों करोड़ की रकम दबाये बैठे बड़े उद्योगपतियों के खिलाफ भी सख्त कदम नहीं उठा सके। बल्कि बैंकों के ब्याज का 1.15 लाख करोड़ माफ कर दिया गया। यही ही नही सुप्रीम कोर्ट द्वारा बकायेदारों के खिलाफ सख्त कदम उठाये जाने के बावजूद भी बैंकों ने बड़े बकायेदारों के नामों का खुलासा करने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि यह बैंकों के नियमों के खिलाफ है। जबकि इन्हीं बैंकों द्वारा हजारों से लाखों की रकम वसूली के लिये आम जनता के नामों का बैंक, तहसीलों में बकायेदारों की लिस्ट में खुलासा किया जाता रहा है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि 57 बड़े बकायेदारों (उद्योगपतियों) ने ही बैंकों की 85 हजार करोड़ की रकम को दाबे रखा है।
अगर देश की अर्थव्यवस्था पर ध्यान दें तो आज 500-1000 के नोटों में 14.98 लाख करोड़ की राशि है। जो देश के राजनेताओं, अफसरों, उद्योगपतियों के पास जमा कालेधन का मात्र 3 फीसदी है। जिसमें सरकारी संस्थान ‘‘राष्ट्रीय साख्यिकी संस्थान’’ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार नकली नोटों की राशि मात्र 400 करोड़ है। जबकि आम जनता एवं छोटे व्यापारियों के पास मात्र 30-40 हजार करोड़ के आसपास कालाधन है। जिनकी संख्या भी एक लाख से अधिक है। जबकि करोड़ अरबों का कालाधान जो स्विस बैंक, पनामा बैंक में जमा है या फिर जमीन, रियल स्टेट, गोल्ड, हीरा-जवाहरात में लगा हुआ है जिनकी संख्या भी मात्र हजारों लोगों में है के मुकाबले सवा सौ करोड़ की जनता को परेशान करने का कौन सा तरीका है। जो सख्त कदम मोदी को हजारों लोगों के खिलाफ उठाना चाहिये था उनके खिलाफ तो उठाया नहीं बल्कि जिन्होंने अपनी बहन-बेटी की शादी के लिये अथवा मकान, दुकान, कारोबार करने के लिये लाखों की मात्रा में अथवा एक-दो करोड़ की संख्या में एकत्रित कर रखा था उस पर चाबुक चलाने से क्या देश-विदेश में छिपा कालाधन सामने आ जायेगा।
अपने को चाय वाला बताने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब 10 लाख का सूट पहनते हैं तो रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड, चैराहा, फुटपाथ आदि स्थानों पर अपनी पत्नी-बच्चों के साथ दिन-रात चाय बेचकर अपने बच्चों के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, मकान, दुकान, शादियों के लिये लाखों की राशि एकत्रित करने वाला चाय विक्रेता अपनी चाय की दुकान छोड़कर अपने बीबी-बच्चों के साथ नोट बदलने के लिये दिनरात लाइन में क्यूं लगा हुआ है। जिस पर मोदी सरकार ने चुनावों की तरह स्याही लगाने का नियम लागू कर उससे भी वंचित कर दिया गया है। बल्कि निर्माण कार्य सहित अन्य कारोबार ठप्प होने से बेरोजगार हुऐ मजदूर जिन पर आरोप है कि वह 300 से 500 रूपये लेकर नोट बदलने में लगे हुए हैं पर भी स्याही के नियमों ने उनको भुखमरी के कगार पर पहुंचा दिया है।
जैसा कि मोदी जी, भाजपा नेता, मंत्री तथा उनके भक्त कह रहे हैं कि इससे आम जनता खुश है और कालेधन वालों की नींद उड़ी हुई है। सवाल उठ रहा है कि लाइनों में लगी जनता परेशान है या फिर जिनके पास कालाधन है वह। इसका नजारा देखना हो तो आप बड़े-बड़े शहरों में स्थापित शोरूम, ज्वैलर्स अथवा बिल्डरों के यहां लगी रईसों की भीड़ से देख सकते हैं। जहां पुराने नोट के बदले दोगनी कीमत पर करोड़ों के सोने, हीरे, जवाहरात की खरीद फरोख्त धड़ल्ले से की जा रही है जिन्हें ना तो आयकर विभाग रोक पा रहा है और न ही वाणिज्य कर कोई दखल दे रहा है। और प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है।
यही स्थिति बिल्डरों के यहां है जहां पुराने नोट के बदले फ्लैटों एवं जमीनों के कारोबार को खुलेआम अंजाम दिया जा रहा है। जिसकी जानकारी होते हुए भी सभी खामोश हैं। लेकिन आम जनता दो-चार हजार की मामूली सी रकम के लिये लम्बी-लम्बी लाइन में लगी हुई है कि कहीं उनके खून-पसीने की कमाई रद्दी की टोकरी में न चली जाये। हालत यह है कि रसोई, पैट्रोल पम्प, चिकित्सालय, दवा विक्रेता आदि जनता से 500-1000 के नोट लेने से इंकार कर रहे हैं या फिर पूरी राशि का पैट्रोल लेने पर मजबूर कर रहे हैं। जबकि किसी भी संस्थान द्वारा बैंकों में 100-100 के नोट की राशि जमा नहीं कराई जा रही है। सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हुए मोहित भारद्वाज जो जीवन और मौत से जूझ रहे हैं के इलाज के दौरान चिकित्सक ने सरकार द्वारा निर्धारित फीस को तो 500-1000 के नोट में स्वीकार कर लिया। लेकिन आॅपरेशन खर्चा, अपनी फीस नई करेंसी अथवा सौ-सौ के नोट में जमा करने के लिये कहा गया। जिसमें पीड़ित के परिजनों द्वारा नई करेंसी और 100-100 के नोट से इंकार किया तो इलाज से ही इंकार कर दिया गया। इस पर परिजनों ने परिचितों को फोन कर बैंक में लाइन लगवाकर धनराशि एकत्रित की गई। इसी तरह के हालत हर चिकित्सालय में देखे जा सकते हैं। आर्थिक आपातकाल से जूझ रही जनता मोदी के निर्णय से खुश नजर आ रही है जिसमें एक मैं भी हूँ। और हर तरफ प्रधानमंत्री की प्रशंसा हो रही है। लेकिन जब वह ज्वैलर्सों के यहां लगी भीड़ और लाखों-करोड़ के बदले सोने-हीरे जवाहरात की खरीद करते हुए पुराने नोटों से देखती है तो यह सोचने पर मजबूर हो जाती है कि क्या उस पर ही 500-1000 नोट का नियम लागू होगा। या फिर जो ब्लैक मनी गोल्ड, रियल स्टेट में लगाई जा रही है वह राशि कहां और कैसे ठिकाने लगाई जायेगी।
मेरे मित्र राजेन्द्र वर्मा जो सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता हैं, कहते हैं कि मोदी सरकार का यह निर्णय सराहनीय है लेकिन जिस तरह के हालत नजर आ रहे हैं उससे आम जनता परेशान दिखाई दे रही है। वह कहते हैं कि मोदी सरकार को इस निर्णय से पूर्व बजट की तरह आर्थिक विशेषज्ञों, पक्ष-विपक्ष के नेताओं को विश्वास में लेना चाहिये था साथ ही देश की बैंक, एटीएम व्यवस्थाओं को दुरस्त करना था। जनता को राहत देने के लिये सरकार को सेना का सहारा भी लेना चाहिये जिससे माहौल को सामान्य बनाया जा सकता है। मेरे मित्र के मुताबिक मोदी का निर्णय देशहित में है उन्हें बिल्डर, गोल्ड, शिक्षा में लगे कालेधन को उजागर करने के लिये भी शीघ्र ही सख्त कदम उठाने चाहिए। इसी तरह मेरे अनेक व्यापारिक मित्र मोदी के कदम की सराहना करते हुए कहते हैं कि इलाज के लिये ना चाहते हुए भी जिस तरह कड़वी दवा पीनी पड़ती है और आॅपरेशन कराना पड़ता है जिसमें इंसान को कभी-कभी अपना आवश्यक अंग भी गंवाना पड़ता है इसी तरह कालेधन को लेकर जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कालेधन के खिलाफ मजदूर से लेकर सामान्य आदमी तक खिलाफ नजर आ रहा है जो मोदी के कदम की सराहना कर रहा है लेकिन आम आदमी पर गाज गिराने से पूर्व बड़े बिल्डरों, उद्योगपतियों, राजनेता, अफसरों, माफियाओं आदि जिन पर सर्वाधिक कालाधन है के खिलाफ मोदी जी सख्त कार्रवाई करते और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिये कड़े कानून लाते तो शायद आम आदमी को बैंकों में ना तो लाइन लगाने पर मजबूर होना पड़ता और न ही देश में आर्थिक आपातकाल के हालात नजर आते। अगर समय रहते बड़े माफियाओं के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाये गये तथा बैंक एटीएम की व्यवस्थाओं में सुधार कर आम जनता को राहत नहीं दी गई तो मोदी सरकार और भाजपा के लिये यह निर्णय मुसीबत का पहाड़ साबित हो सकता है। जिसका असर आगामी समय में उ.प्र. सहित पांच राज्यों में होने जा रहे विधान सभा चुनावों में साफ दिखाई देगा।
मफतलाल अग्रवाल
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं)1479278842415

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh