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नोट पर रोकः अंधेर नगरी, चौपट राजा….

Sach Kadva Hai
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‘‘अंधेर नगरी चौपट  राजा, टका सेर भाजी, टका सेर खाजा’’ की कहावत नोटबंदी योजना पर सटीक साबित हो रही है जिसके चलते पिछले एक माह से पूरे देश में आर्थिक आपातकाल की स्थिति बनी हुई है। एक माह बाद भी बैंक और एटीएम के बाहर लम्बी लाइनें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। जनधन खातों पर सख्ती और नोट बदलने की प्रक्रिया पर चन्द दिनों बाद रोक लगाने के बावजूद भी कुल 14 लाख करोड़ के 500-1000 के नोटों में से 13 लाख करोड़ की राशि मात्र 27 दिन के भीतर बैंकों में जमा होने से लगता है कि कालाधन के लिये लायी गई योजना ध्वस्त होने के कगार पर पहुंच गई है क्योंकि ना तो कहीं पर बड़ी मात्रा में कालाधन पकड़ा गया है और न ही केन्द्र सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी हो पायी है। लेकिन देश की अर्थव्यवस्था को 1.28 लाख करोड़ से अधिक का आर्थिक नुकसान हो गया है और मजदूर से लेकर व्यापारी तक त्राहि-त्राहि कर उठा है।

नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और उनके भक्त भले ही विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर कालाधन होने का आरोप लगा रहे हैं लेकिन सवाल उठता है कि क्या कालाधन विपक्षी नेताओं के पास ही है? क्या भाजपा और उनके समर्थक नेताओं पर कालाधन नहीं है? क्या चुनावों में विपक्षी ही अनाप-शनाप धन खर्च करते हैं? अथवा भाजपा बगैर धन के ही चुनाव लड़ती है। इसकी एक झलक 2014 के लोकसभा चुनावों में देखने को मिली थी जब 60 साल तक देश को लूटने वाली कांगे्रस नरेन्द्र मोदी और भाजपा के प्रचार-प्रसार-वैभव के आगे परास्त हो गई थी। नोटबंदी का असर देश की 125 करोड़ की जनता पर दिखाई दे रहा है। जिसके कारण कहीं मजदूर रोजी-रोटी की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं तो कहीं छोटा दुकानदार ग्राहकों के इंतजार में बैठा है। कहीं आवश्यक कार्यों के लिये पैसा की चाहत में बैंक-एटीएम की लाइन में एक माह बाद भी लगा हुआ है। नोटबंदी से किसी राजनैतिक नेता, उद्योगपति, बिल्डर, माफिया, भ्रष्ट अफसरों का कोई आर्थिक नुकसान हुआ हो अथवा शिकंजा कसा गया हो इसकी अभी तक कोई बड़ी सूचना उपलब्ध नहीं है। लेकिन नई करेंसी के साथ कई भाजपा नेताओं, बैंक अफसरों के पकड़े जाने की खबरें जरूर आ रही हैं।
सवाल उठता है क्या कालाधन के लिये 125 करोड़ की जनता ही जिम्मेदार है जिसे मुशीबत में डाल दिया गया। जहां से एक महीने बाद ‘‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’’ वाली कहावत ही सटीक साबित हो रही है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हों या फिर स्व. राजीव गांधी कहते थे कि केन्द्र से चला विकास का पैसा आम जनता तक मात्र एक रूपये में 10-15 पैसा तक ही पहुंच पाता है। शेष पैसा अफसर, नेताओं, ठेकेदारों के गठजोड़ के बीच ही बंट जाता है। इसके लिये प्रधानमंत्री मोदी ने क्या सख्त कानून बनाया कि पूरा धन ईमानदारी के साथ जनता तक पहुंचे। कौन नहीं जानता कि सांसद, विधायक निधि धन का किस तरह दुरूपयोग होता है और कैसे विकास योजनाओं को कागजों में संचालित किया जाता है। और घोटालों की जांच में भी किस तरह घोटाले किये जाते हैं। विकास के नाम पर किस तरह लूट होती है इसकी हजारों घटनाऐं देखने को मिलती हैं जिसमें ग्राम पंचायत के विकास के लिये धन आवंटन के बदले खण्ड विकास कार्यालय से लेकर जिला से राज्य मुख्यालय तक कमीशन खोरी का खेल खेला जाता है जो जितना ज्यादा कमीशन देता है उसे उसी अनुसार धन का आवंटन कर दिया जाता है। यही स्थिति क्षेत्र पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, जिला पंचायत आदि में देखने को मिलती है। जहां धन आवंटन होने के बाद विकास कार्य कागजों में सिमट कर रह जाता है।
अब एक बार फिर नोटबंदी की ओर चलते हैं एक तरफ बैंकों में लम्बी लाइनें लगी हुई हैं तो दूसरी तरफ आम जन जीवन अस्त-व्यस्त हैं पिछले दिनों मुझे ग्रामीण अंचल में जाने का मौका मिला तो बड़े पैमाने पर ईंट-भट्टा मजदूर 500-1000 के नोटों से खरीददारी करते हुए बाजारों में दिखाई दिये जिसमें जब मजदूरों से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि भट्टा मालिकों ने ये ही बड़े नोट दिये हैं जिन्हें बाजार में चलाने में उन्हें भारी परेशानी हो रही है जो दुकानदार नोट ले रहे हैं वह दोगुने-तिगने दामों पर आटा, दाल, चावल, कपड़े आदि दे रहे हैं जिन्हें वह लेने पर मजबूर हैं। क्योंकि उनके पास न तो बैंक अकाउंट है न ही नई करेंसी और न ही छोटे नोट हैं। जब ईंट भट्टा एशोसियेशन के अध्यक्ष सुधीर सिंह फौजदार से पूछा गया कि मजदूरों का शोषण हो रहा है तो उनका कहना था कि भट्टा मालिकों पर न तो नई करेंसी है और न ही छोटे नोट हैं। क्योंकि ईंट बिक्री का भुगतान भी बिल्डरों एवं ग्राहकों द्वारा बड़े पुराने नोटों से हो रहा है और बैंक भुगतान कर नहीं रहीं हैं। जिसका नुकसान मजदूरों के साथ ईंट भट्टा व्यवसाईयों को भी हो रहा है। श्री फौजदार कहते हैं कि करीब 200 ईंट भट्टों पर हर पन्द्रहवें दिन करीब 300 करोड़ का भुगतान होता है जिनके लिये नई करेंसी उपलब्ध कराना असंभव है।
दूसरा मामला रेडीमेड विक्रेता नरेन्द्र अग्रवाल के यहां देखने को मिला जहां वह ग्राहकों से 500-1000 के नोट ले रहे थे। जब उनके पूछा गया कि यह नोट तो बंद हो गये हैं तो उनका कहना था कि ठण्ड एवं शादियों के लिये किया गया स्टाॅक बेकार हो जायेगा। और दुकानदारी भी ठप्प हो जायेगी जिससे उन्हें कई लाख की हानि होगी। इससे बचने के लिये 25 से 50 प्रतिशत का मुनाफा बढ़ाकर सामान बेच रहे है। जो ग्राहक नई करेंसी अथवा छोटे नोट देता है उसे कम मुनाफे पर सामान दे दिया जाता है। इसके अलावा बर्तन विक्रेता गौरव गोयल की दुकान पर व्यापारी पुराना बकाया लेने आया जिसे पुरानी करेंसी देने पर लेने से इंकार कर दिया, जिसपर दुकानदार ने नई करेंसी और छोटे नोट न होने की वजह से भुगतान से इंकार कर दिया जिसपर व्यापारी को पुराने नोट ले जाने पर मजबूर होना पड़ा।

इसके अलावा नोटबंदी का असर किस तरह खौफनाक होता जा रहा है इसके दो नजारे भी देखने को मिले जिसमें छुट्टी लेकर भारतीय स्टेट बैंक शाखा में धन जमा करने पहुंचे सैनिक डिग्म्बर सिंह को पैन कार्ड न होने पर बैंक अधिकारी ने वापिस कर दिया। जब वह पैन कार्ड लेकर बैंक में घुसने लगा तो पुलिस कर्मियों ने उसे पुनः लाइन में लगने के लिये कहा जिसे लेकर सैनिक ने सिपाही अरूण कुमार का सिर फोड़ दिया। जिसके बाद सैनिक को जेल भेज दिया गया। दूसरी घटना इससे चन्द कदम दूर पर हुई जब दुकानदार ने सामान के बदले 500 का पुराना नोट लेने से इंकार किया तो झगड़ा हो गया। जिसमें ग्राहक और उसके परिजनों ने दुकानदार श्याम सुन्दर गुप्ता का सिर फोड़कर चार दांत भी तोड़ दिये। ऐसी अनेक घटनाएं देखने-सुनने को मिल रही हैं। जिसमें कहीं बैंकों में तोड़फोड़ की जा रही है तो कहीं अधिकारियों से गाली-गलौज हो रही है। एक माह से पुलिस-प्रशासन आवश्यक कार्यों को छोड़कर बैंकों की व्यवस्था में लगा हुआ है। लेकिन स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही है। मोदी और उनके अंधभक्त नोटबंदी के कितने भी फायदे बताएं और विरोधियों पर कोई कटाक्ष करें लेकिन जमीनी स्तर पर यह योजना पूर्ण रूप से ध्वस्त होती नजर आ रही है जिसका खामियाजा आम जनता के साथ-साथ भाजपा को विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है। क्योंकि जनता को कहीं भी ना तो भ्रष्टाचार से राहत मिलती दिख रही है और न ही विकास कार्यों में कहीं पारदर्शिता नजर आ रही है। बल्कि अब अधिकारी, कर्मचारियों द्वारा रिश्वत के रूप में नयी करेंसी की मांग की जा रही है। जिसे जुटाने के लिये भी जनता बैंकों की लाइन में लगने पर मजबूर है। यही कारण है कि नोटबंदी पर ‘‘अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा’’ की कहावत सटीक साबित है।

-मफतलाल अग्रवाल
(लेखक वरिष्ट पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

मफतलाल अग्रवाल
(लेखक वरिष्ट पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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